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सारंडा जंगल में फिर हाथी का आतंक: भनगांव में युवक को कुचलकर मार डाला

घटनास्थल पर पडा़ मृतक मुंगडू़ नायक का शव

एक महीने में तीसरी मौत से ग्रामीणों में दहशत, पारंपरिक उपाय फेल, वन विभाग बेबस

रिपोर्ट: शैलेश सिंह।

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के घने सारंडा जंगल क्षेत्र में एक बार फिर हाथी का कहर टूटा है। किरीबुरु वन प्रक्षेत्र अंतर्गत भनगांव में रविवार की शाम करीब 6:30 बजे एक उग्र दतैल हाथी ने 35 वर्षीय युवक मुंगडू़ नायक (पिता- रोनु नायक) को दौड़ा-दौड़ाकर कुचल डाला। यह वही हाथी है जो पिछले एक महीने से नवागांव और भनगांव क्षेत्र में दहशत फैला रहा है और अब तक तीन जानें ले चुका है — दो झारखंड में और एक ओडिशा में।

रोजो पर्व में शामिल होने जा रहा था युवक, जंगल से निकल अचानक हमला

घटना के वक्त गांव में रोजो पर्व मनाया जा रहा था। गांव के पास झूला सजाया गया था और मृतक मुंगडू़ नायक अपने एक साथी के साथ पैदल वहां जा रहा था। इसी बीच पास के जंगल में छुपा हाथी अचानक बाहर निकला और दोनों युवकों पर हमला कर दिया। एक युवक तो किसी तरह आम के पेड़ की आड़ लेकर जान बचाने में सफल रहा, लेकिन मुंगडू़ को हाथी ने लगभग 20-30 फीट तक दौड़ाकर पकड़ लिया और पटक-पटक कर मार डाला। घटनास्थल पर मृतक का चप्पल और टॉर्च पड़ा मिला है।

घटनास्थल पर पडा़ मृतक मुंगडू़ नायक का शव

घरों को भी बनाया निशाना, सीमा पार ओडिशा में भी मचा चुका कहर

हाथी की हिंसा सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं है। ग्रामीणों के अनुसार यह ओडिशा सीमा से सटे गांव में भी एक महिला को मौत के घाट उतार चुका है। भनगांव निवासी उपेन्द्र नायक और सीमा पार ओडिशा के एक ग्रामीण का घर भी रविवार की रात हाथी ने तोड़ दिया। हाथी न केवल मानवों को निशाना बना रहा है, बल्कि घरों और संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचा रहा है।

पटाखे, मशालें और टॉर्च फेल — वन विभाग की तैयारियां नाकाम

हालिया हमलों के मद्देनजर वन विभाग ने दो दिन पहले ही भनगांव और आसपास के लोगों को टॉर्च और पटाखे वितरित किए थे। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह ‘कागजी सुरक्षा’ से ज्यादा कुछ नहीं थी। हमले के वक्त न तो कोई सतर्कता थी, न कोई चेतावनी। हाथी अब पटाखे और आग से डरना बंद कर चुका है।

सारंडा डीएफओ कर रहे विशेषज्ञों की टीम बुलाने की कोशिश

वन विभाग के सूत्रों के अनुसार, सारंडा डीएफओ ने इस उग्र हाथी को काबू में लाने के लिए पश्चिम बंगाल से प्रशिक्षित विशेषज्ञों की टीम बुलाने की प्रक्रिया शुरू की है। फिर भी ग्रामीणों का गुस्सा इस बात को लेकर है कि वन विभाग ने पहले से खतरे की चेतावनी होते हुए भी समय पर प्रभावी कार्रवाई नहीं की।

दहशत में गांव, रात होते ही वीरान हो जाता है इलाका

भनगांव, नवागांव और आसपास के इलाके में हाथी के भय से शाम होते ही सन्नाटा पसर जाता है। लोग झोपड़ियों से निकलना बंद कर चुके हैं। रात में आग जलाकर और पहरा देकर लोग जागकर समय बिता रहे हैं। डर इस कदर है कि बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे और महिलाएं अकेले बाहर निकलने से कतरा रही हैं।

प्रशासन और सरकार पर सवाल — “हमें क्यों मरने के लिए छोड़ा गया है?”

घटना के बाद ग्रामीणों ने वन विभाग और प्रशासन के खिलाफ गहरा आक्रोश व्यक्त किया। गांव के ग्रामीणों ने कहा कि,

“अगर शहरों में ऐसी घटनाएं होतीं तो पूरी मशीनरी हरकत में आ जाती। लेकिन हम जंगल में हैं, इसलिए कोई नहीं सुनता।” ग्रामीणों की मांग है कि या तो हाथी को पकड़कर किसी अन्य जंगल में भेजा जाए, या फिर स्थायी समाधान के तहत गांवों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

मानव-वन्यजीव संघर्ष की भयावह तस्वीर

यह घटना एक बार फिर इस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है कि मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष दिन-ब-दिन और विकराल रूप ले रहा है। जहां एक तरफ वन क्षेत्रों में लगातार इंसानी दखल बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर हाथियों जैसे जानवरों का प्राकृतिक निवास सिमटता जा रहा है। इसका परिणाम यह है कि ग्रामीण इलाकों में आम आदमी जान जोखिम में डालकर जीने को मजबूर है।

निष्कर्ष:

सरकार और वन विभाग को यह समझना होगा कि सिर्फ टॉर्च और पटाखे बांटना समाधान नहीं है। सारंडा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में जहां इंसान और हाथी दोनों एक-दूसरे के अस्तित्व में बाधा बनते जा रहे हैं, वहां स्थायी नीति, रैपिड रिस्पॉन्स सिस्टम, और ग्रामीणों को वैज्ञानिक प्रशिक्षण देना अनिवार्य है।

भनगांव की त्रासदी सिर्फ एक गांव की नहीं, यह पूरे झारखंड के वन क्षेत्रों के लिए चेतावनी है। अब भी अगर तंत्र नहीं जागा, तो अगला शिकार कौन होगा — इसका अनुमान कोई नहीं लगा सकता।

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