लगातार हमलों से दहशत में ग्रामीण, कई परिवार घर छोड़कर भागे; वन विभाग कर रहा विशेषज्ञों की मदद से हाथी पर नियंत्रण का प्रयास
रिपोर्ट : शैलेश सिंह
सारंडा जंगल के किरीबुरु वन क्षेत्र अंतर्गत भनगांव में रविवार रात करीब 8 बजे एक दतैल हाथी के हमले में 35 वर्षीय मुंगडू़ नायक (पिता – रोनु नायक) की मौत होने की अपुष्ट खबर सामने आ रही है। यह हाथी पिछले एक महीने से भनगांव और नवागांव में तबाही मचा रहा था और अब तक दो लोगों की जान ले चुका है।
हाथी के डर से गांव में सन्नाटा, कई लोग घर छोड़ भागे
घटना की सूचना मिलने के बाद भी सटीक जानकारी नहीं मिल पाई है क्योंकि भनगांव जैसे सुदूरवर्ती गांव में मोबाइल नेटवर्क की सुविधा बेहद कमजोर है। वहीं हाथी के भय से गांव के कई लोग सुरक्षित ठिकानों की ओर पलायन कर चुके हैं। ग्रामीणों ने बताया कि यह हाथी लगातार घरों को तोड़ता, सामानों को नष्ट करता और रात के समय गांव में घूमता रहा है।
पटाखे और पारंपरिक तरीकों से नहीं रुका विनाश
घटना की रात भी यह हाथी भनगांव में घुस आया था। ग्रामीणों ने अपने घर और सामान को बचाने के लिए पारंपरिक तरीकों – जैसे पटाखे और मशालों – से हाथी को भगाने की कोशिश की, लेकिन इस बार हाथी ने पलटकर हमला कर दिया। इसी दौरान मुंगडू़ नायक हाथी की चपेट में आ गया, जिसकी मौके पर ही मृत्यु की आशंका जताई जा रही है। हालांकि, अब तक कोई पुष्टि नहीं हो पाई है क्योंकि हाथी घटनास्थल के आसपास ही डटा हुआ है और कोई भी वहां जाने का साहस नहीं कर पा रहा।
ओडिशा में भी महिला की ले चुका है जान
स्थानीय लोगों ने बताया कि यह हाथी ओडिशा सीमा से सटे एक गांव में भी एक महिला को मार चुका है। हाथी इतना आक्रामक हो चुका है कि अब पटाखे, मशालें और आग जैसी पारंपरिक विधियां भी उसे डराने में नाकाम हो रही हैं।
वन विभाग ने दिए थे टार्च और पटाखे
घटनास्थल के लोगों को हाथी से बचाने के लिए वन विभाग ने दो दिन पहले ही टॉर्च, पटाखे आदि वितरित किए थे, लेकिन इससे किसी प्रकार की स्थायी सुरक्षा नहीं मिल सकी। सारंडा डीएफओ ने इस खतरनाक हाथी को काबू में लाने के लिए पश्चिम बंगाल से विशेषज्ञ टीम बुलाने हेतु प्रयासरत हैं। वन विभाग की टीम सोमवार सुबह घटनास्थल पर पहुंचकर जांच करेगी।
ग्रामीणों में भारी आक्रोश
लगातार हो रहे हमलों से ग्रामीणों में गहरा आक्रोश और भय व्याप्त है। ग्रामीण प्रशासन और वन विभाग से मांग कर रहे हैं कि इस हाथी को या तो काबू किया जाए या फिर इसे दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाए।
यह घटना मानव-वन्यजीव संघर्ष की एक और चिंताजनक तस्वीर है, जहां विकास और जंगल के बीच फंसे ग्रामीण जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं।