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जन शताब्दी या “जन सज़ा एक्सप्रेस”?

ट्रेन का इंतजार घंटों से करते जमशेदपुर के यात्री

रेल मंत्रालय की घोर लापरवाही का शिकार लौहांचल की जनता, बड़बिल-हावड़ा ट्रेन बन चुकी है यात्री जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी!

रिपोर्ट : शैलेश सिंह।

रेल मंत्रालय को अगर थोड़ी भी शर्म बची हो, तो वह बड़बिल-हावड़ा जनशताब्दी एक्सप्रेस को या तो तत्काल बंद कर दे या जनता से माफी मांगे। यह ट्रेन अब सुविधा नहीं, सजा का पर्याय बन चुकी है। जनता रोज़ अपनी कमर तोड़ती है, गर्मी में झुलसती है, ट्रेन के इंतजार में धूल-गंदगी में लेटी रहती है — और बदले में मिलता है रेलवे का घमंडी और बेहिस रवैया।

बडा़जामदा स्टेशन पर रात्रि साढे़ बारह बजे के बाद पहुंची ट्रेन

रेल मंत्रालय की मेहरबानी या यात्री वर्ग की दुर्गति?

13 जून को जो हुआ, वह भारत के किसी भी नागरिक के साथ होना मानवाधिकार का सीधा उल्लंघन है। हावड़ा से सुबह 6:20 बजे खुलने वाली ट्रेन दोपहर एक बजे रवाना होती है, और बड़बिल पहुंचती है रात 11:35 बजे! इतनी बड़ी देरी कोई संयोग नहीं, यह सालों से चल रही नालायकी की सरकारी स्क्रिप्ट है।

बड़बिल से वापसी में ट्रेन को दोपहर 1:40 बजे खुलना था, लेकिन खुली रात 12:28 बजे — यात्रियों की रात स्टेशन पर गुज़री, वो भी बिना इंतज़ाम, बिना सुविधाओं, बिना जानकारी के।

ट्रेन का इंतजार घंटों से करते जमशेदपुर के यात्री

लौहांचल की जनता को जान-बूझकर किया जा रहा है अपमानित

रेलवे विभाग ने झारखंड और ओडिशा के इस क्षेत्र को सिर्फ मालामाल करने का साधन मान रखा है। लाखों टन लौह अयस्क की ढुलाई से सरकार सालाना हज़ारों करोड़ रुपए कमाती है, लेकिन बदले में यहां की जनता को देती है — लेटलतीफ ट्रेन, गंदे स्टेशन, टूटी शौचालय और धूलभरे प्लेटफॉर्म।

सुविधाओं के अभाव में बडा़जामदा स्टेशन में ट्रेन इंतजार में सोते यात्री

यह सिर्फ असुविधा नहीं है, यह जनता के साथ सुनियोजित दुर्व्यवहार है।

यात्री बेबस, रेलवे बेलगाम — लोकतंत्र का अपमान

  • स्टेशन पर नहीं हैं प्रतीक्षालय, नहीं है पीने का पानी, नहीं है साफ-सुथरा शौचालय।
  • ट्रेन के बारे में कोई सूचना बोर्ड नहीं, कोई घोषणा नहीं, कोई सहयोगी नहीं।
  • धूप में बूढ़े, बच्चे, महिलाएं फर्श पर लेटकर ट्रेन का इंतजार करते हैं, और रेलवे अफसरों को फर्क तक नहीं पड़ता।

क्या यही है “जन सेवा”? क्या यही है “नया भारत”? या फिर यह है “रेल मंत्रालय की संवेदनहीनता की नई पराकाष्ठा”?

जनता के सवाल: ट्रेन चलाई क्यों, जब चला नहीं सकते?

रेल मंत्री जी, जवाब दीजिए!

  1. क्या बड़बिल-हावड़ा जनशताब्दी एक्सप्रेस जनता पर कोई कृपा है या यह आपकी जिम्मेदारी है?
  2. जब ट्रेन हर दिन 10-12 घंटे लेट चलती है, तो आप कब तक मौन धारण कर बैठे रहेंगे?
  3. अगर वंदे भारत जैसी प्रीमियम ट्रेनों पर फोकस है, तो इस क्षेत्र को क्यों भिखारी की तरह ट्रीट किया जाता है?

जनता की चेतावनी: अब और नहीं सहेंगे अपमान!

लौहांचल की जनता कोई दूसरे दर्जे का नागरिक नहीं है। अगर रेलवे को बड़बिल-हावड़ा ट्रेन को इस तरह ट्रॉमा एक्सप्रेस की तरह ही चलाना है, तो जनता मांग करती है कि इस ट्रेन को तत्काल बंद किया जाए।

कम से कम लोग कोई और विकल्प तलाशेंगे और हर दिन अपमान का घूंट पीने से तो बचेंगे।

रेल मंत्रालय की चुप्पी, जनाक्रोश की चिंगारी

अगर यही हाल रहा, तो आने वाले दिनों में बड़बिल, गुवा, मेघाहातुबुरु, किरीबुरु, डोंगुवापोशी जैसे स्टेशनों पर जनता का फूट पड़ना तय है। सरकार और रेलवे को यह समझना होगा कि जनता भी जवाब देना जानती है — चुनाव में, सड़कों पर और आंदोलन के माध्यम से।

अब वक्त आ गया है कि बातें नहीं, व्यवस्था चाहिए। वादे नहीं, समय की पाबंदी चाहिए। रेल नहीं, सम्मान चाहिए।

वरना याद रखिए — “जनशताब्दी” से जनादेश कब छिन जाए, ये भी पता नहीं चलेगा।

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