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मनमानी और मशीनीकरण के शिकंजे में दुबिल के मजदूर

आठ महीने से नहीं मिला वेतन, भुखमरी की कगार पर पहुंचे 16 ग्रामीण परिवार, मनोहरपुर माइंस में शोषण का आरोप

रिपोर्ट : शैलेश सिंह
पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत सेल (SAIL) की मनोहरपुर आयरन ओर माइन्स (चिड़िया) के दुबिल खदान में वर्षों से काम कर रहे 16 मजदूर आज गहरी आर्थिक त्रासदी और भुखमरी की हालत में हैं। दुबिल गांव के ये मजदूर बीते अक्टूबर माह से लगातार आठ महीने से वेतन से वंचित हैं। कभी पत्थर तोड़ने के कार्य से जुड़े ये मेहनतकश मजदूर अब बेरोजगारी, भुखमरी और प्रशासनिक उदासीनता के दंश झेल रहे हैं।

श्रमिकों की गुहार, लेकिन अब तक नहीं मिला न्याय

मजदूरों ने सोमवार को झारखंड मजदूर संघर्ष संघ के केन्द्रीय अध्यक्ष रामा पांडेय से मुलाकात कर अपनी व्यथा साझा की। रामा पांडेय ने तत्परता दिखाते हुए झारखंड सरकार के मंत्री दीपक बिरुवा से इस मुद्दे को उठाया और शीघ्र समाधान की मांग की। लेकिन यह सवाल जस का तस है कि एक सरकारी कंपनी के अधीन काम करने वाले गरीब मजदूर आखिर क्यों दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं?

मशीन माइनिंग के नाम पर किया गया श्रमिकों का विस्थापन

मजदूरों ने बताया कि वे कई वर्षों से मैनुअल माइनिंग के तहत पत्थर तोड़ने का कार्य कर अपनी आजीविका चला रहे थे। इसके बदले प्रति टन तय मजदूरी मिलती थी जिससे वे संतुष्ट थे। लेकिन बाद में सेल द्वारा ठेका पर कार्यरत एनएसआईपीएल नामक मनोपोली कंपनी ने मशीनीकरण की आड़ में इन्हें हटाकर साइडिंग प्लांट में डेली वेजेज मजदूरी पर तैनात कर दिया।

कुछ दिन साइडिंग प्लांट में काम करवाने के बाद, उन्हें फिर रोड निर्माण कार्य के लिए पत्थर जमा करने जैसे अप्रासंगिक कार्य में झोंक दिया गया। जब मजदूरों ने इसका विरोध किया, तो उन्हें काम से ही हटा दिया गया और ‘घर बैठिए, मजदूरी मिलेगा’ का झूठा आश्वासन दिया गया।

सितंबर तक मिला वेतन, उसके बाद से पूर्ण विराम

मजदूरों के अनुसार, उन्हें सितंबर 2023 तक किसी प्रकार से वेतन मिला, लेकिन उसके बाद से वेतन का एक रुपया भी नसीब नहीं हुआ। अब वे सभी बिना काम और बिना वेतन के अपने परिवार के साथ दरिद्रता का जीवन जी रहे हैं।

खदान के बदले बर्बाद हुई खेती, गांव में नहीं बचा सहारा

ग्रामीणों ने यह भी बताया कि दुबिल खदान के संचालन के कारण उनकी कृषि भूमि पूरी तरह बंजर हो चुकी है। पहले वे साल में दो बार खेती करते थे, लेकिन अब खेत बंजर हो गए हैं और खेती लायक भूमि भी नहीं बची। खदान गांव के बगल में है, लेकिन स्थानीय लोगों को ही रोजगार नहीं मिल रहा।

मजदूरों ने कहा कि पहले 150 से अधिक मजदूर खदान में काम करते थे, जिन्हें धीरे-धीरे हटाकर आज महज 16 मजदूर नाम के लिए बचे हैं, और वे भी आठ महीने से बिना वेतन के। इस दौरान वे कई बार मंत्री, सांसद, विधायक और प्रशासनिक अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक उन्हें कोई राहत नहीं मिली।

रामा पांडेय का आरोप: डीजीएमएस नियमों का उल्लंघन

झारखंड मजदूर संघर्ष संघ के अध्यक्ष रामा पांडेय ने कहा कि खदान में मशीन माइनिंग के साथ-साथ मैनुअल माइनिंग भी अनिवार्य है। यह खदान डीजीएमएस (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ माइंस सेफ्टी) के दिशा-निर्देशों का खुला उल्लंघन कर रही है। सिर्फ मशीनीकरण कर हजारों ग्रामीणों का रोजगार छीना गया है। यह न सिर्फ श्रमिकों के अधिकारों का हनन है, बल्कि श्रम कानूनों की सीधी अवहेलना भी है।

वेतन से वंचित मजदूरों के नाम इस प्रकार हैं –

  1. बिदू चाम्पिया
  2. हीरा चाम्पिया
  3. डोंका चाम्पिया
  4. गुनाय चाम्पिया
  5. राम आइन्द
  6. मंगल चाम्पिया
  7. प्रधान माझी
  8. गोमा सुरीन
  9. सुखराम अंगारिया
  10. गोनो चाम्पिया
  11. डांगा सोरेन
  12. चुड़ी चेरोवा
  13. माटू चेरोवा
  14. राम सिंह चेरोवा
  15. दुलार बहंदा
    (एक अन्य मजदूर का नाम उपलब्ध नहीं है)

बच्चों की शिक्षा, परिवार का पोषण सब पर संकट

इन मजदूरों के परिवार अब अत्यंत विषम परिस्थिति में जीवन गुजार रहे हैं। बच्चों की शिक्षा रुक चुकी है, भोजन और दवा तक का संकट है। सरकार और कंपनी दोनों ने इन मजदूरों को विकास की जगह विनाश और उपेक्षा दी है।


अब सवाल यह है कि – क्या सेल जैसी प्रतिष्ठित सरकारी कंपनी मजदूरों की ज़िंदगी से इस तरह खिलवाड़ कर सकती है? क्या एनएसआईपीएल जैसे ठेकेदार कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई होगी? क्या दुबिल गांव के मजदूरों को उनका हक मिलेगा?

इसका उत्तर अब सरकार और प्रशासन को देना होगा, और अगर उन्होंने अब भी चुप्पी साधी, तो यह मामला केवल दुबिल तक सीमित नहीं रहेगा – बल्कि झारखंड भर के मजदूरों के लिए एक चेतावनी बन जाएगा।

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