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हाथी के आतंक से सहमा भनगांव: रोया चाम्पिया का तीसरा घर भी किया ध्वस्त, ग्रामीणों ने दी चेतावनी

रोया चाम्पिया अपना घर दिखाते हुये

 

कहा– वन विभाग नहीं जागा तो हम खुद करेंगे हाथी से निपटने का फैसला, किरीबुरु रेंज पदाधिकारियों से खाली

रिपोर्ट : शैलेश सिंह, सारंडा।
सारंडा के घने जंगलों में एक बार फिर हाथी का कहर टूटा है। किरीबुरु वन क्षेत्र अन्तर्गत भनगांव निवासी रोया चाम्पिया का तीसरा घर भी बीती रात एक दतैल हाथी ने पूरी तरह तहस-नहस कर दिया। हाथी ने घर में रखे सारे अनाज को खा लिया और बर्तन व घरेलू सामानों को रौंद कर नष्ट कर दिया। इस हमले में किसी तरह रोया चाम्पिया अपने परिवार के साथ भाग कर जंगल में शरण लेकर जान बचाने में सफल रहा। अब उसके पास रहने के लिए कोई घर नहीं बचा है।

पहले भी दो बार उजड़ा था आशियाना

बताया गया है कि इससे पूर्व रोया चाम्पिया के दो घर इसी हाथी द्वारा तोड़े जा चुके हैं। लगातार तीसरी बार घर उजड़ने से रोया चाम्पिया और उसका परिवार पूरी तरह टूट चुका है। उनके पास अब न घर है, न अनाज, और न ही कोई सुरक्षित स्थान।

10 दिनों से आतंक मचा रहा है दतैल

स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि यह दतैल हाथी पिछले 10 दिनों से भनगांव एवं नवागांव क्षेत्र में आतंक मचा रहा है। अब तक दर्जन भर घरों को वह रौंद चुका है। हाथी के भय से ग्रामीण रातभर जागते रहते हैं। बच्चों और बुजुर्गों की नींद और सुरक्षा दोनों खतरे में है। लोग बुरी तरह दहशत में हैं।

वन विभाग पर लगाया लापरवाही का आरोप

ग्रामीणों ने वन विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि ओडिशा की वन विभाग की एक टीम कुछ दिन पहले आई थी, लेकिन सिर्फ स्थिति देखकर लौट गई। उसके बाद से न कोई कार्रवाई हुई और न ही कोई मदद मिली। लोगों का आरोप है कि अब तक किसी पीड़ित को मुआवजा तक नहीं दिया गया है।

ग्रामीणों की चेतावनी– अब हाथी से खुद निपटेंगे

हाथी से हो रहे नुकसान और सरकारी उदासीनता से त्रस्त ग्रामीणों ने साफ शब्दों में चेतावनी दी है कि यदि वन विभाग जल्द कार्रवाई नहीं करता और हाथी को आबादी से दूर नहीं भगाया जाता, तो वे खुद हाथी को मार गिराने जैसा कठोर कदम उठाने को मजबूर होंगे। वर्षों पहले भी भनगांव के जंगल में एक दतैल हाथी की हत्या अज्ञात लोग कर उसका दांत काट ले जा चुके हैं। ग्रामीणों ने कहा–

“अगर वन विभाग को हाथी की जान प्यारी है, तो क्या हमारी जान की कोई कीमत नहीं? हम रोज जान पर खेलकर जी रहे हैं। अब बर्दाश्त नहीं होगा।”

रोया चाम्पिया अपना घर दिखाते हुये

किरीबुरु रेंज पदाधिकारियों से विहीन, भगवान भरोसे चल रहा प्रबंधन

इस गंभीर संकट के बीच सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि किरीबुरु वन क्षेत्र का प्रशासनिक ढांचा ही चरमरा गया है। इस क्षेत्र के रेंजर शंकर भगत, जिनके पास पांच रेंजों का प्रभार था, 31 मई को सेवानिवृत्त हो गए हैं। वहीं फॉरेस्टर का पद पहले से रिक्त है। ऐसे में रेंज पूरी तरह भगवान भरोसे चल रही है।

मुआवजे की प्रक्रिया भी ठप, पीड़ितों को राहत नहीं

हाथी के हमलों से जिन ग्रामीणों के घर और संपत्ति नष्ट हुए हैं, उन्हें अब तक वन विभाग की ओर से किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता या मुआवजा नहीं मिला है। इससे पीड़ितों में आक्रोश और बढ़ता जा रहा है।

स्थानीय प्रशासन और वन विभाग की निष्क्रियता पर उठे सवाल

इस संकट की घड़ी में ग्रामीणों ने सरकार और प्रशासन से गुहार लगाई है कि वे तत्काल इस दिशा में कार्रवाई करें। क्षेत्र में रेंजर और फॉरेस्टर की तैनाती की मांग की जा रही है ताकि हाथी और मानव संघर्ष की घटनाओं पर समय रहते नियंत्रण पाया जा सके।

यदि अब भी वन विभाग नहीं जागा, तो स्थिति और भयावह हो सकती है।

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