जिलाध्यक्ष सुशील बारला का बयान— ‘सरना स्थल, बहुफसली भूमि और जनसांस्कृतिक अधिकारों के विरुद्ध काम कर रही है हेमंत सरकार’
रिपोर्ट : शैलेश सिंह
भारत आदिवासी पार्टी, पश्चिमी सिंहभूम के जिलाध्यक्ष सुशील बारला ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि 4 जून को झारखंड बंद के आह्वान का उनकी पार्टी पूर्ण समर्थन करेगी। यह बंद आदिवासी बचाओ मोर्चा झारखंड द्वारा बुलाया गया है, जिसका मकसद राज्य सरकार की आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ विरोध दर्ज कराना है।
आदिवासी विरोधी हो गई है राज्य सरकार: सुशील बारला
प्रेस विज्ञप्ति में सुशील बारला ने झारखंड की गठबंधन सरकार पर आदिवासी हितों से विश्वासघात करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चुनावी वादे करते हुए कहा था कि यदि उनकी सरकार बनी तो भूमि बैंक को रद्द किया जाएगा, लेकिन सत्ता में आने के बाद वे अपने ही वादे से मुकर गए हैं।
“जिस भूमि बैंक में हजारों सरना स्थल और सामुदायिक भूमि शामिल हैं, उसे रद्द करने के बजाय सरकार अब अधिग्रहण की प्रक्रिया को तेज कर रही है। यह आदिवासी अस्मिता पर सीधा हमला है,” — सुशील बारला
जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध
बारला ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि वह चाईबासा में राष्ट्रीय राजमार्ग के नाम पर ग्रामीणों की बहुफसली जमीनों का जबरन अधिग्रहण कर रही है, जबकि स्थानीय ग्रामीण इसके खिलाफ हैं। इसी प्रकार, नोवामुंडी पदापहाड़ क्षेत्र में रेलवे विस्तार के नाम पर भी आदिवासी भूमि हड़पने की कोशिश की जा रही है।
उन्होंने याद दिलाया कि मुख्यमंत्री ने चुनावी सभा में कुजू डैम परियोजना को रद्द करने का वादा किया था, लेकिन अब उस पर भी सरकार चुप्पी साधे बैठी है।
सरना धर्म कोड और सिरोमटोली विवाद
प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख किया गया कि सिरोमटोली के केन्द्रीय सरना स्थल से बनाए गए रैम्प को हटाने की मांग को लेकर सरना समुदाय महीनों से आंदोलनरत है, लेकिन राज्य सरकार ने अब तक इस पर कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं की है।
बारला ने आरोप लगाया कि सरकार केवल “घड़ियाली आंसू बहा रही है” और झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा सरना धर्म कोड के समर्थन की बातें केवल डैमेज कंट्रोल की रणनीति हैं, जिनका जमीनी स्तर पर कोई असर नहीं दिखाई देता।
भारत आदिवासी पार्टी ने झारखंड बंद को बताया जरूरी कदम
सुशील बारला ने कहा कि मौजूदा परिस्थिति में झारखंड बंद एक आवश्यक और न्यायोचित कदम है। “जब सरकार जनभावनाओं के प्रति असंवेदनशील हो जाती है और अपने वादों से मुकरती है, तो जन आंदोलन ही आखिरी विकल्प बन जाता है।”
उन्होंने जनता, सामाजिक संगठनों और अन्य राजनीतिक दलों से 4 जून के बंद को समर्थन देने की अपील करते हुए कहा कि यह सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि आदिवासी अस्मिता, अधिकार और पहचान को बचाने की लड़ाई है।