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किरीबुरू-मेघाहातुबुरु जनरल अस्पताल में फिजियोथेरेपी की सुविधा की माँग तेज़

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झारखंड मज़दूर संघर्ष संघ ने कहा – गुवा और बोलानी की तरह किरीबुरू के कर्मचारियों को भी मिलनी चाहिए सुविधा

गुवा संवाददाता।
झारखंड मज़दूर संघर्ष संघ के महामंत्री राजेंद्र सिंधिया ने किरीबुरू-मेघाहातुबुरु जनरल अस्पताल में फिजियोथेरेपी चिकित्सा की सुविधा शुरू करने की माँग की है। उन्होंने सेल गुवा और सेल बोलानी की तर्ज पर किरीबुरू खदान में कार्यरत कर्मचारियों और उनके परिवारजनों के लिए भी यह सुविधा बहाल करने को जरूरी बताया है।

इस संबंध में झारखंड मज़दूर संघर्ष संघ ने सेल प्रबंधन (झारखंड खान समूह) को एक औपचारिक माँग पत्र सौंपा है। पत्र में कहा गया है कि गुवा और बोलानी में ठेका संस्थान के माध्यम से फिजियोथेरेपी की सुविधा उपलब्ध कराई गई है, तो उसी प्रकार की व्यवस्था किरीबुरू-मेघाहातुबुरु जनरल अस्पताल में भी संभव है।

कर्मचारियों के हित में उठी आवाज़

राजेंद्र सिंधिया ने अपने पत्र में लिखा है कि सेल किरीबुरू खदान में कार्यरत नियमित कर्मचारी, उनके परिजन और ठेका श्रमिक शारीरिक श्रम के कारण कई बार ऑर्थोपेडिक समस्याओं से जूझते हैं। लेकिन स्थानीय अस्पताल में फिजियोथेरेपी की सुविधा नहीं होने के कारण उन्हें इलाज के लिए बाहर जाना पड़ता है, जिससे उन्हें आर्थिक, मानसिक और शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि कर्मचारियों और उनके परिवारजनों की सेहत और कुशलता ही कंपनी की उत्पादकता का आधार है। ये लोग अपने जीवन के स्वर्णिम वर्ष कंपनी को अर्पित करते हैं, ऐसे में उनका उपचार भी प्राथमिकता में आना चाहिए।

बाहर इलाज कराना पड़ रहा महँगा

वर्तमान समय में फिजियोथेरेपी के लिए कर्मचारियों को किरीबुरू से बाहर जाना पड़ता है। वहाँ एक सत्र की लागत ₹300 से ₹500 तक आती है और मरीजों को सप्ताह में 2-3 सत्र लेने की सलाह दी जाती है। साथ ही यातायात, रहने-खाने और उपचार का खर्च मिलाकर एक सामान्य कर्मचारी के लिए यह वित्तीय बोझ बन जाता है।

इसके अतिरिक्त, प्रबंधन द्वारा फिजियोथेरेपी के लिए किसी प्रकार का रेफरल भी नहीं दिया जाता, जिससे कर्मचारियों को और कठिनाई होती है।

ऑर्थोपेडिक फिजियोथेरेपी की बढ़ती ज़रूरत

खदान क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारियों को हड्डी, मांसपेशियों, स्नायुबंधन, टेंडन और जोड़ों से संबंधित समस्याएँ अधिक होती हैं। ये समस्याएं लंबे समय तक अनुपचारित रहने पर स्थायी विकलांगता का रूप ले सकती हैं। फिजियोथेरेपी इस तरह की शारीरिक समस्याओं के प्रभावी इलाज में उपयोगी है।

झारखंड मज़दूर संघर्ष संघ ने कहा है कि यदि बोलानी और गुवा में ठेका संस्थान के माध्यम से यह सुविधा चलाई जा सकती है, तो किरीबुरू में क्यों नहीं? क्या किरीबुरू के कर्मचारी इस हक से वंचित रहेंगे?

प्रबंधन से मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की अपील

राजेंद्र सिंधिया ने सेल प्रबंधन से मानवीय संवेदना और जिम्मेदारी दिखाने की अपील की है। उन्होंने आग्रह किया कि क्षेत्रीय जनता, कर्मचारियों और उनके परिवारों की सुविधा को देखते हुए फिजियोथेरेपी इकाई जल्द से जल्द शुरू की जाए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह मांग किसी विशेष लाभ के लिए नहीं, बल्कि मानवता, स्वास्थ्य अधिकार और व्यावसायिक जिम्मेदारी के तहत की जा रही है।

स्वास्थ्य सुविधा में समानता की मांग

मजदूर संघ का कहना है कि एक ही कंपनी के तहत कार्यरत तीन खदानों (गुवा, बोलानी और किरीबुरू) के बीच स्वास्थ्य सुविधा में असमानता उचित नहीं है। जब गुवा और बोलानी के कर्मचारियों को फिजियोथेरेपी जैसी महत्वपूर्ण चिकित्सा सुविधा मिल रही है, तो किरीबुरू के कर्मचारियों को इससे क्यों वंचित रखा जाए?

क्या कहता है क्षेत्रीय अनुभव?

स्थानीय कर्मचारियों की मानें तो पीठ दर्द, घुटने का दर्द, कंधे की जकड़न, मांसपेशियों की खिंचाव जैसी समस्याएं बेहद आम हैं। कई बार चोट लगने के बाद समय पर सही उपचार नहीं मिलने से स्थिति गंभीर हो जाती है।

एक कर्मचारी ने कहा, “हम लोग रोज़ 8-10 घंटे पत्थरों के बीच काम करते हैं। शरीर जवाब देने लगता है लेकिन अस्पताल में इससे जुड़ी कोई सुविधा नहीं है। बाहर जाना न संभव है न आर्थिक रूप से ठीक।”

निष्कर्ष: स्वास्थ्य सुविधा में सुधार समय की माँग

सेल किरीबुरू खदान में फिजियोथेरेपी चिकित्सा की माँग सिर्फ एक सुविधा की माँग नहीं, बल्कि कर्मचारियों की गरिमा, स्वास्थ्य और अधिकार से जुड़ा मुद्दा है। झारखंड मजदूर संघर्ष संघ की इस पहल ने एक बार फिर औद्योगिक क्षेत्र में स्वास्थ्य व्यवस्था की असमानता को उजागर किया है।

अब देखना यह होगा कि सेल प्रबंधन इस माँग पर कब और कितना संवेदनशील रुख अपनाता है। क्या किरीबुरू के श्रमिकों को भी उनके समकक्षों के समान स्वास्थ्य सुविधा मिलेगी या फिर यह मांग कागज़ों तक ही सीमित रह जाएगी?

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