50-60 वर्षों से बहती लाल मिट्टी ने बना दिया खेतों को बंजर, 18 रैयतों की मांग- नौकरी और 50 लाख का मुआवजा
रिपोर्ट : शैलेश सिंह।
सेल (SAIL) के गुवा लौह अयस्क खदान से हर वर्ष वर्षा ऋतु में बहकर आने वाला लाल पानी, कंकड़-पत्थर और लौह अयस्क जामकुडिया की नदी में भारी मात्रा में गिरता है। यह मलबा नदी पार कर सीधे रैयतों की कृषि भूमि में जमा हो जाता है। बीते 50-60 वर्षों से लगातार यह सिलसिला जारी है, जिससे खेतों की उपजाऊ मिट्टी पूरी तरह से नष्ट हो चुकी है। अब इन खेतों में सिर्फ कंकड़ और लाल मिट्टी बची है – खेती करने की कोई गुंजाइश नहीं रही।
रैयतों की बदहाली: खेत उजड़े, भूख से बेहाल
ग्रामवासियों का कहना है कि एक समय था जब यही खेत उनकी रोजी-रोटी का आधार थे, लेकिन अब यह भूमि पूरी तरह से बंजर बन चुकी है। खेतों में न तो धान उगता है, न सब्जी – रैयत आज दाने-दाने को मोहताज हैं। वर्षों से जारी इस विनाश को लेकर अब ग्रामीणों ने मोर्चा खोल दिया है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग में दर्ज हुआ मामला
इस मामले को लेकर पीड़ित रैयतों और विजय कुमार मेलगांडी ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का दरवाजा खटखटाया। आयोग ने इसे गंभीरता से लेते हुए राज्य प्रशासन को आवश्यक निर्देश दिए, जिसके बाद अनुमंडल पदाधिकारी (SDO) जगन्नाथपुर के कार्यालय में त्रिपक्षीय वार्ता आयोजित की गई।
त्रिपक्षीय बैठक में उठी 50 लाख मुआवजा और नौकरी की मांग
बैठक में पीड़ित रैयतों ने दो प्रमुख मांगें रखीं:
प्रत्येक प्रभावित परिवार के एक सदस्य को स्थायी नौकरी दी जाए।
प्रत्येक रैयत को 50 लाख रुपये का मुआवजा SAIL प्रबंधन द्वारा दिया जाए।
ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि खेती के नुकसान की भरपाई केवल आर्थिक सहायता और पुनर्वास से ही संभव है। बैठक में यह बात प्रमुखता से उठाई गई कि प्रभावित क्षेत्र में पुनः खेती योग्य स्थिति बन पाना अब असंभव है।
सारंडा पीढ़ और जनप्रतिनिधियों की भी बैठक में भागीदारी
इस महत्वपूर्ण वार्ता में सारंडा पीढ़ के मानकी लागुडा़ देवगम, कुशु देवगम, सुरेश देवगम, राजनीतिज्ञ विजय कुमार मेलगांडी, समेत अन्य जनप्रतिनिधि और ग्रामीण बड़ी संख्या में उपस्थित थे। सभी ने एक स्वर में कहा कि रैयतों के साथ हुआ यह अन्याय अब और नहीं सहा जाएगा।
सेल प्रबंधन पर सवाल, पर्यावरणीय लापरवाही का आरोप
ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों ने सेल प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए कि वह पर्यावरणीय सुरक्षा के मानकों की धज्जियाँ उड़ाकर खनन कर रहा है। न तो पानी के बहाव को रोकने के लिए कोई कदम उठाया गया है, न ही मलबा रोकने की कोई व्यवस्था की गई है।
स्थानीय प्रशासन और आयोग के निर्देशों की अगली कार्रवाई पर नज़र
बैठक के बाद अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या सेल प्रबंधन पीड़ित रैयतों की मांगों को मानेगा या फिर संघर्ष की अगली राह तय की जाएगी। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के हस्तक्षेप के बाद यह मामला अब राज्य और केंद्रीय स्तर पर भी गंभीर रूप से उठने की संभावना है।
ग्रामीणों का चेतावनी भरा स्वर – अगर न्याय नहीं मिला, तो आंदोलन होगा तेज
ग्रामीणों ने साफ कहा है कि यदि उनकी मांगों को जल्द पूरा नहीं किया गया, तो वे संगठित रूप से आंदोलन शुरू करेंगे। “हमने अपनी जमीन गँवाई है, अब चुप नहीं बैठेंगे,”
न्याय की उम्मीद और संघर्ष की तैयारी
अब देखना यह है कि गुवा खदान के इस पर्यावरणीय संकट और मानवीय त्रासदी के समाधान की दिशा में प्रशासन और उद्योग प्रबंधन कितनी तत्परता से कार्रवाई करता है। क्या रैयतों को उनका हक मिलेगा, या लाल पानी में बहती रहेगी उनकी उम्मीदें?