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“आदिवासी हितों के साथ विश्वासघात”: भाजपा ने टीएसी बैठक का किया बहिष्कार, शराब नीति को बताया युवा विरोधी- चंपाई सोरेन

 

राज्यपाल के संरक्षण के बिना बुलाई गई टीएसी बैठक पर उठे सवाल, भाजपा ने नशा को बढ़ावा देने वाले एजेंडे को बताया आदिवासी विरोधी

सरायकेला- संवाददाता
झारखंड में आदिवासी समाज से जुड़े अहम मुद्दों पर विचार-विमर्श करने वाली ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (TAC) की बैठक को लेकर बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस बैठक का बहिष्कार करने का एलान करते हुए राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला है। भाजपा नेताओं का कहना है कि यह बैठक न केवल परंपराओं के खिलाफ है, बल्कि इसका एजेंडा भी आदिवासी समाज के हितों के खिलाफ है।

राज्यपाल के संरक्षण की परंपरा तोड़ी गई- चंपाई सोरेन

भाजपा नेता सह पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने स्पष्ट किया कि टीएसी की बैठकें हमेशा राज्यपाल के संरक्षण में होती रही हैं, जो आदिवासी समुदाय की संवैधानिक संरक्षक होती हैं। लेकिन मौजूदा राज्य सरकार ने इस परंपरा को दरकिनार कर बैठक बुला ली है, जो न केवल असंवैधानिक है, बल्कि आदिवासी हितों के साथ धोखा भी है।

पिछली बैठकों का कोई ठोस परिणाम नहीं

भाजपा का आरोप है कि टीएसी की अब तक हुई बैठकों से कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है। वर्षों से पेसा (PESA) कानून और अन्य महत्वपूर्ण आदिवासी मुद्दे लंबित पड़े हैं। भाजपा नेताओं का मानना है कि सरकार केवल दिखावे के लिए बैठकें बुला रही है, जबकि जमीनी स्तर पर कोई ठोस कार्य नहीं हो रहा है।

बैठक के एजेंडे में ‘नशा का लाइसेंस’

भाजपा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 20 मई को प्रस्तावित बैठक में पहला मुद्दा आदिवासी बहुल गांवों में शराब की दुकानें और बार खोलने को लेकर लाइसेंस जारी करने का है। भाजपा नेताओं ने इसे झारखंड की युवा पीढ़ी को नशे के दलदल में धकेलने की साजिश बताया है।

सरकार के पास बहुमत फिर भी निर्णय टालमटोल

टीएसी में सरकार के पास बहुमत है, फिर भी भाजपा का कहना है कि पेसा जैसे कानूनों के क्रियान्वयन में टालमटोल से साफ हो जाता है कि सरकार आदिवासी हितों को लेकर गंभीर नहीं है। भाजपा नेताओं का दावा है कि यह बैठक महज औपचारिकता है, और इसका उद्देश्य असली मुद्दों से ध्यान भटकाना है।

आदिवासी समाज के हितों की अनदेखी

भाजपा का कहना है कि जिन मुद्दों पर टीएसी को सरकार को सलाह देनी चाहिए, उन पर न तो कोई कार्य योजना बनी है, न कोई स्पष्ट नीति। उल्टा, अब इस मंच का इस्तेमाल ऐसे निर्णय लेने में किया जा रहा है जो आदिवासी संस्कृति, स्वास्थ्य और सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाएंगे।

राजनीतिक ध्रुवीकरण के संकेत

इस बहिष्कार के बाद झारखंड की राजनीति में टीएसी को लेकर नया ध्रुवीकरण देखने को मिल सकता है। जहां भाजपा इसे “आदिवासी विश्वास का अपमान” बता रही है, वहीं सरकार की ओर से अब तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।

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