15 करोड़ की जलापूर्ति योजना बनी भ्रष्टाचार का शिकार, ग्रामीणों ने दी सड़क जाम की चेतावनी
रिपोर्ट : शैलेश सिंह
नक्सल प्रभावित क्षेत्र सारंडा के गंगदा पंचायत अंतर्गत दोदारी गांव और आसपास के 14 गांवों में इन दिनों भीषण जलसंकट गहराया हुआ है। 10 मई से दोदारी स्थित जलापूर्ति योजना (डब्लूटीपी) से पेयजल की आपूर्ति पूरी तरह से बंद हो गई है, जिससे ग्रामीणों में आक्रोश और बेबसी चरम पर है। हर घर में पानी की एक-एक बूंद के लिए त्राहिमाम मचा हुआ है। महिलाएं और बुजुर्ग डेगची, बाल्टी और हंडा लेकर डेढ़-दो किलोमीटर दूर जंगलों के जल स्रोतों या नदी-नालों से पानी लाने को मजबूर हैं।
बिजली बिल बकाया, पानी की सप्लाई ठप
जब दोदारी की दर्जनों महिलाएं और पुरुष पानी की मांग और समस्या की जानकारी के लिए डब्लूटीपी परिसर पहुंचे, तो वहां मौजूद कर्मियों ने बताया कि बिजली विभाग ने बकाया बिल न चुकाने के कारण संयंत्र की बिजली काट दी है। नतीजा—पूरे पंचायत में पेयजल सप्लाई ठप!
गांव की महिलाओं का कहना है कि जब जलापूर्ति चालू थी, तब भी नलों से लाल और बदबूदार पानी निकलता था, जो पीने योग्य नहीं था। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या 15 करोड़ रुपये की योजना सिर्फ दिखावे की थी?
करोड़ों खर्च, फिर भी जलमीनार सूखे
गंगदा पंचायत के लिए लगभग 15 करोड़ की लागत से पेयजल योजना बनाई गई थी, जिसमें दोदारी और काशिया-पेचा गांवों में जलमीनारों का निर्माण किया गया। पर विडंबना यह है कि कई जलमीनारों तक पानी पहुंच ही नहीं पाया है। दोदारी में जहां संयंत्र की बिजली काट दी गई है, वहीं काशिया-पेचा में जलमीनार में एक बूंद पानी नहीं चढ़ पाया।
ग्रामीणों का आरोप है कि इस योजना का आधा पैसा ठेकेदारों और विभागीय अधिकारियों ने मिलकर डकार लिया है। नतीजा यह है कि गांव-गांव में जल संकट है और लोग जल माफियाओं के भरोसे जीने को मजबूर हैं।
पानी के लिए धरती पर नर्क
इन तपती दोपहरी में जब पारा 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर रहा है, गांवों की महिलाएं घड़ों और हंडियों को सिर पर लादे जंगल की ओर पानी की तलाश में निकलती हैं। कई बुजुर्ग और बच्चे भी इस कार्य में लगे हैं। रोजाना 3-4 चक्कर लगाने के बाद ही परिवार की जरूरतें पूरी हो पा रही हैं।
गांव की एक बुजुर्ग महिला रोती हुई कहती हैं, “हम बूढ़े लोग अब कितनी दूर जाएंगे पानी के लिए? सरकार तो बस कागज पर योजनाएं बनाती है और अधिकारी कमीशन खा जाते हैं।”
सड़क पर उतरने की तैयारी, प्रशासन को चेतावनी
गांव के लोगों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही इस जल संकट का स्थायी समाधान नहीं किया गया, तो वे सलाई चौक पर मुख्य सड़क को पूरी तरह से जाम करेंगे। उनका कहना है कि इससे पहले भी कई बार सड़क जाम और प्रदर्शन हो चुके हैं, लेकिन हर बार बीडीओ और विभागीय अधिकारी झूठे आश्वासन देकर निकल जाते हैं।
इस बार ग्रामीणों ने एलान किया है कि “अब और नहीं! इस बार जब सड़क पर उतरेंगे, तो हर अधिकारी से ऑन द स्पॉट जवाब लिया जाएगा। हर झूठे वादे का हिसाब होगा।”
लोकल प्रशासन की चुप्पी, विभागीय भ्रष्टाचार पर सवाल
इस गंभीर संकट पर प्रशासन की चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। आखिर क्यों समय पर बिजली बिल का भुगतान नहीं किया गया? अगर सप्लाई की गुणवत्ता खराब थी, तो वर्षों से निगरानी में क्या किया गया? अगर 15 करोड़ रुपये खर्च हुए, तो परिणाम क्या हैं?
गांव के युवाओं ने कहा कि इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए और दोषी अधिकारियों व ठेकेदारों को जेल भेजा जाना चाहिए। पानी जैसी बुनियादी जरूरत के साथ खिलवाड़ अब और बर्दाश्त नहीं होगा।
विकास योजनाएं या भ्रष्टाचार की योजनाएं?
सवाल उठता है कि क्या झारखंड सरकार की विकास योजनाएं सिर्फ कागज़ पर चल रही हैं? गंगदा पंचायत की यह जलापूर्ति योजना राज्य सरकार की ग्रामीण जल जीवन मिशन का हिस्सा थी, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि लोग बाल्टी लेकर जंगलों में भटक रहे हैं।
राज्य सरकार और जिला प्रशासन को अब तुरंत इस दिशा में कार्रवाई करनी होगी, वरना यह जनाक्रोश किसी बड़े आंदोलन में बदल सकता है।
निष्कर्ष: पानी के लिए बगावत की तैयारी
सारंडा का यह जल संकट न केवल प्रशासनिक विफलता का प्रतीक है, बल्कि एक सामाजिक अन्याय की कहानी भी है। जब जनता की मूलभूत जरूरतें ही पूरी नहीं होतीं, तो लोकतंत्र का क्या अर्थ रह जाता है?
अब ग्रामीणों ने तय कर लिया है—या तो पानी मिलेगा, या सड़कों पर आंदोलन होगा। और इस बार यह आंदोलन सिर्फ प्रदर्शन नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष साबित होगा।
इस दौरान सारंडा विकास महिला समिति दोदारी की अध्यक्ष सुनीता देवी, सुमी माझी, सेवंती सोरेन, जानो कुम्हार, लास्की बेसरा, शांति सोरेन, शुक्रमणि मुर्मू, उप्पल सोरेन, कुर्मी हंसदा, प्रदीप सिद्धू, अजय कुम्हार, कोनदलो सांडिल, शिवनाथ सांडिल आदि मौजूद थे।