तालाब निर्माण की आड़ में हो रही है बालू की अवैध तस्करी, ग्रामीण भूमि पर खनन का ‘लीगल ड्रामा’, रात-दिन ट्रैक्टरों से पहुंचाया जा रहा बालू
बालू तस्करी का नया अड्डा बना गुमुरिया
रिपोर्ट : शैलेश सिंह
पश्चिमी सिंहभूम जिले के जगन्नाथपुर थाना क्षेत्र के जैंतगढ़ ओपी अंतर्गत गुमुरिया गांव इन दिनों अवैध बालू तस्करी का केंद्र बन चुका है। यह तस्करी कोई साधारण गतिविधि नहीं, बल्कि एक संगठित आपराधिक गठजोड़ का हिस्सा है जिसमें बालू माफिया, खनन विभाग और कुछ भ्रष्ट प्रशासनिक अधिकारी शामिल हैं। तस्करी का यह खेल रणनीति के तहत इतने गुप्त तरीके से खेला जा रहा है कि आम आदमी को इसकी भनक तक नहीं लग पा रही।
नदी की पुरानी धारा पर जमा हुआ बालू बना लूट का केंद्र
सूत्रों के अनुसार, गुमुरिया से ओडिशा को जोड़ने वाले मुंडला मार्ग पर एक पुल के समीप गुमुरिया नदी के किनारे स्थित एक ग्रामीण, श्री प्रधान की भूमि इस पूरे काले खेल का आधार बनी हुई है। वर्षों पहले यह भूमि नदी की धारा के भीतर थी, परंतु समय के साथ नदी की धारा बदल गई और यह भू-भाग धीरे-धीरे उपेक्षित होकर घास-झाड़ियों से ढक गया। लेकिन इसी भूमि पर बालू का एक विशाल भंडार छिपा हुआ था—जिसे बालू माफियाओं की पैनी नजर ने पहचान लिया।
तालाब की आड़ में बालू की रात-दिन लूट
यहाँ बालू की खुदाई युद्ध स्तर पर शुरू हुई। परंतु यह खुदाई किसी तालाब के निर्माण के लिए नहीं थी, बल्कि बालू खनन की खुली लूट थी। उक्त भूमि से ट्रैक्टरों के जरिये दिन-रात बालू की ढुलाई हो रही है। प्रतिदिन दर्जनों ट्रैक्टर बालू लादकर झारखण्ड की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। न कोई रोक, न कोई जांच—मानो पूरा प्रशासन इस अपराध के आगे आंख मूंदकर बैठा हो।
प्रशासनिक मौन और खनन विभाग की भूमिका संदेह के घेरे में
सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी मात्रा में हो रहे खनन और बालू की ढुलाई के बावजूद खनन विभाग और जिला प्रशासन क्यों चुप है? क्या उन्हें इसकी जानकारी नहीं? या फिर वे भी इस खेल के हिस्सेदार हैं? सूत्रों का दावा है कि बालू माफिया हर ट्रैक्टर पर ‘कट’ के रूप में मोटी रकम देकर अधिकारियों को चुप करा देते हैं। यह भ्रष्ट तंत्र इतना मजबूत हो चुका है कि शिकायतों के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती।
गुप्त रिपोर्टिंग और स्थानीय असंतोष
स्थानीय लोगों में इस अवैध गतिविधि को लेकर असंतोष है, लेकिन डर और प्रभाव के कारण वे खुलकर बोलने से डरते हैं। कुछ लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि प्रशासन के कुछ अफसर रात के समय खुद आकर ‘निरीक्षण’ करते हैं, और फिर वहीं से तस्करी की हरी झंडी दे दी जाती है। यह भ्रष्टाचार केवल सरकारी स्तर पर ही नहीं, बल्कि पंचायत स्तर तक फैला हुआ है।
संभावित आर्थिक और पर्यावरणीय संकट
इस प्रकार की अवैध खनन गतिविधियां न केवल सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचा रही हैं, बल्कि पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव डाल रही हैं। नदी किनारे की संरचना में बदलाव, जलस्तर में गिरावट और भूमि कटाव जैसी समस्याएं सामने आने लगी हैं। अगर समय रहते प्रशासन ने कार्रवाई नहीं की, तो यह क्षेत्र एक बड़े पारिस्थितिक संकट की ओर अग्रसर हो जाएगा।
निष्पक्ष जांच की मांग, बड़ा रैकेट उजागर होने की संभावना
स्थानीय सामाजिक संगठनों और जागरूक नागरिकों ने इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच की मांग की है। यदि जिला प्रशासन या राज्य सरकार इस मामले की गंभीरता से जांच करे, तो न केवल बालू माफियाओं का संगठित गिरोह उजागर होगा, बल्कि कई भ्रष्ट अधिकारी भी कानून के शिकंजे में आएंगे।
निष्कर्ष: खामोश व्यवस्था बनाम संगठित अपराध
गुमुरिया में हो रही बालू तस्करी किसी छिटपुट अवैध खनन की घटना नहीं, बल्कि एक बड़े संगठित अपराध की बानगी है। खनन विभाग की चुप्पी, प्रशासन की निष्क्रियता और ग्राम सभा जैसे लोकतांत्रिक साधनों का दुरुपयोग इस बात का प्रमाण है कि कैसे भ्रष्ट तंत्र मिलकर प्राकृतिक संसाधनों की लूट को ‘वैध’ बना देता है। समय रहते अगर कार्रवाई नहीं हुई, तो गुमुरिया आने वाले दिनों में बालू माफियाओं का नया गढ़ बन जाएगा।