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भुरकुंडा में वनाधिकार पत्थलगड़ी का 9वाँ स्थापना दिवस

ग्रामसभा ने सामुदायिक वन संरक्षण का लिया सामूहिक संकल्प; परंपरागत मुण्डा-पाहन व्यवस्था के साथ वनाधिकार कानून 2006 पर ज़ोर

रिपोर्ट: खरसावां

कुचाई प्रखंड के भुरकुंडा गांव में परंपरागत वनाधिकार पत्थलगड़ी (वनाधिकार बोर्ड गड़ी) का 9वाँ स्थापना दिवस सामुदायिक भागीदारी के साथ मनाया गया। आयोजन की अध्यक्षता ग्राम मुण्डा भरत सिंह मुण्डा ने की, जबकि पाहन दिगेंद्र सिंह मुण्डा ने परंपरागत रीति से पूजा-अर्चना कर ग्रामसभा से वन संरक्षण का संकल्प दिलवाया।


पत्थलगड़ी का अर्थ और उद्देश्य

ग्रामीणों ने स्पष्ट किया कि भुरकुंडा की पत्थलगड़ी केवल प्रतीक नहीं, बल्कि वनाधिकार कानून, 2006 के तहत मान्यता प्राप्त सामुदायिक वन संसाधनों के संरक्षण, प्रबंधन और पुनर्जीवन (पुनर्स्थापन) का ग्रामस्तरीय घोषणा-पत्र है। पत्थलगड़ी स्थल पर अंकित संदेशों और सामुदायिक नियमों के ज़रिये जंगल की कटाई, अवैध दोहन और बाहरी हस्तक्षेप पर नियंत्रण को प्राथमिकता दी जा रही है।


सामूहिक संकल्प: “जंगल बचाओ, गांव बचाओ”

सभा में उपस्थित ग्रामीणों ने तय किया कि—

  • बिना ग्रामसभा अनुमति किसी तरह की अवैध पेड़ कटाई या खनन नहीं होने दिया जाएगा।
  • सूखे पत्ते, गोंद, फल-फूल, औषधीय पौधों जैसे गैर-काष्ठ वन उपज का परंपरागत, टिकाऊ उपयोग किया जाएगा।
  • युवाओं की भागीदारी से सामुदायिक निगरानी दस्ता सक्रिय रहेगा।
  • वन पुनर्जीवन हेतु वर्षा ऋतु में सामूहिक रोपण (पुनरोपण) अभियान चलाया जाएगा।

परंपरा और आधुनिक कानून का संगम

कार्यक्रम ने आदिवासी स्वशासन की पारंपरिक संरचना—मुण्डा, पाहन, सहित स्थानीय समुदाय—को वनाधिकार अधिनियम 2006 की सामुदायिक प्रावधानों से जोड़ा। ग्रामीण नेतृत्व ने कहा कि पत्थलगड़ी केवल अधिकार का दावा नहीं, बल्कि जिम्मेदारी का सार्वजनिक संकल्प है: “जंगल रहेगा तो जल रहेगा, और जल रहेगा तो जीवन रहेगा।”


प्रमुख उपस्थित ग्रामीण

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में ग्रामीण शामिल हुए। प्रमुख सहभागी:
रोहित गोप, लाबूराम मुण्डा, रामचंद्र मुण्डा, डूबराय हे़म्ब्रम, कैलाश मुण्डारी, जामुना मुण्डा, पांगु पांडेया, जगाय सोय, अमरेंद्र हे़म्ब्रम, दुर्गा चरण हांसदा, जितेंद्र हांसदा सहित अनेक ग्रामीण महिला-पुरुष।


आगे की कार्ययोजना

ग्रामसभा ने निर्णय लिया कि:

  1. पत्थलगड़ी स्थल पर वन उपयोग से संबंधित ग्राम नियमों का अद्यतन लेखन किया जाएगा।
  2. वन संसाधन मानचित्रण हेतु युवाओं को प्रशिक्षण दिलाया जाएगा।
  3. निकटवर्ती गांवों के साथ इंटर-ग्राम वन सुरक्षा समन्वय तंत्र बनाया जाएगा ताकि अवैध कटाई की सूचनाएँ साझा हो सकें।

सार: भुरकुंडा की यह 9-वर्षीय सामुदायिक पहल बताती है कि स्थानीय परंपरा, ग्रामसभा शक्ति और वनाधिकार कानून का मेल ग्रामीणों को न केवल अधिकार देता है, बल्कि जंगल बचाने की सामूहिक जिम्मेदारी भी सौंपता है। यह मॉडल कुचाई क्षेत्र सहित अन्य वन पंचायतों के लिए प्रेरक साबित हो सकता है।

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